हनुमान चालीसा का परिचय:
भगवान हनुमान को हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्हें भक्तिभाव से पूजने वाले लोग हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करते हैं। हनुमान चालीसा के शब्दों में भक्ति और शक्ति का एक अद्वितीय संगम होता है। इस चालीसा को पढ़ने और सुनने से भक्त की मनोयात्रा में स्थिरता और संदेहों का नाश होता है।
हनुमान चालीसा का महत्व और इसका इतिहास
हनुमान चालीसा को तुलसीदास जी ने रचा था। यह एक प्राचीन हिंदू धार्मिक पाठ है जिसमें भगवान हनुमान की महिमा, गुण, और कार्यों का वर्णन किया गया है। यह चालीसा उनके भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक पाठ है जो उनकी भक्ति में स्थिरता और शक्ति प्रदान करता है।
हनुमान चालीसा के शब्दों का अर्थ और महत्व
हनुमान चालीसा में प्रत्येक चौपाई का अर्थ और महत्व है। इसमें भगवान हनुमान के गुणों का वर्णन किया गया है जो उनके भक्तों को साधना के माध्यम से दिखाता है। इसका पाठ करने से मन, वचन, और कार्य में स्थिरता और उत्साह आता है।
हनुमान चालीसा के गायन का महत्व
हनुमान चालीसा के गायन का महत्व अत्यंत उच्च है। इसके गायन से श्रद्धालु को आत्मिक शांति और सुख की प्राप्ति होती है। इस पाठ को नियमित रूप से करने से विचारों की शुद्धता बढ़ती है और व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
इस प्रकार, हनुमान चालीसा एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक पाठ है जो भगवान हनुमान की भक्ति में स्थिरता और उत्साह प्रदान करता है। इसके पाठ करने से मन, वचन, और कार्य में सुधार और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
श्री हनुमान चालीसा का पाठ हिन्दी मे
दोहा:
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधिविद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार॥
चौपाई:
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कञ्चन बरण बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुँचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबेको आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबेको रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सँजीवन लखन जियाये। श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै। अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीशा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
युग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें कांपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट सेंननि भ्रमण की जैं। हनुमत सेइ सर्व सुख करैं॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहुं गुरुदेव की नाईं॥
जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा॥
दोहा॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
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